शब्द का अर्थ
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ध्वन :
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पुं० [सं०√ध्वन् (शब्द)+अप्] १. शब्द। २. गुंजार। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
ध्वनन :
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पुं० [सं० ध्वन्+ल्युट्—अन] १. ध्वनि या शब्द करना। २. ध्वनि के रूप में कुछ अभिव्यक्ति करने की क्रिया या भाव। ३. व्यंग्यार्थ के बोध कराने की क्रिया या भाव। ४. अस्पष्ट शब्द। |
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ध्वनि :
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स्त्री० [सं०√ध्वन्+इ] १. वह जो कानों से सुनाई पड़े या सुना जा सके। श्रवणेंद्रिय का विषय। आवाज। शब्द। विशेष—किसी प्रकार का आघात होने से जो स्वर-लहरी उत्पन्न होकर वायु, जल आदि में से होती हुई हमारे कानों तक पहुँचती है, वही ध्वनि कहलाती है। कुछ आचार्य तो उसी को ध्वनि कहते हैं जो केवल अवर्णात्मक हो, अथवा जिसके वर्ण अलग-अलग और स्पष्ट न सुनाई पड़ते हों; और कुछ लोग वर्णात्मक तथा अवर्णात्मक दोनों प्रकार के शब्दों को ध्वनि कहते हैं। जो लोग केवल अवर्णात्मक शब्दों को ध्वनि मानते हैं, वे वर्णात्मक शब्दों से उत्पन्न होनेवाले परिणाम को ‘स्फोट’ कहते हैं। २. ऐसी आवाज, नाद या शब्द जिसका कुछ भी अर्थ या आशय न हो। जैसे—पशु-पक्षियों के कंठ की ध्वनि; बादल गरजने से होनेवाली ध्वनि। ३. बाजे आदि बजने से उत्पन्न होनेवाले शब्द। जैसे—घंटे या घड़ियाल की ध्वनि। ४. किसी उक्ति या कथन का वह गूढ़ और व्यंग्यपूर्ण आशय, जो उसके वाच्यार्थ से भिन्न तथा स्वतंत्र हो और वक्ता का कोई विशिष्ट अभिप्राय या मनोभाव ऐसे रूप में व्यक्त करता हो। जो सहज में और साधारणतः सब लोगों की समझ में न आवे। विशेष—कथन का जो आशय व्यंजना नामक शब्द-शक्ति से निकलता है वही साहित्य के क्षेत्र में ‘ध्वनि’ कहलाता है। जैसे—यदि किसी झूठे या बाहनेबाज आदमी से कहा जाय, ‘आप बहुत सत्यवादी हैं’ तो इस वाक्य का व्यंग्यार्थ यही होगा कि ‘आप बहुत झूठे हैं।’ और इस प्रकार निकलनेवाला व्यंगयार्थ ही ‘ध्वनि’ कहलाता है। साहित्य में इस प्रकार का व्यंग्यार्थवाला काव्य, बहुत ही चमत्कारपूर्ण होने के कारण, परम उत्कृष्ट और प्रथम श्रेणी का माना जाता है। |
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ध्वनिक :
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वि० [सं० ध्वनि से] ध्वनि-संबंधी। (फोनेटिक) |
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ध्वनि-क्षेपक :
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वि० [ष० त०] ध्वनि को चारों ओर फैलानेवाला। |
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ध्वनि-क्षेपक-यंत्र :
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पुं० [कर्म० स०] एक प्रसिद्ध यंत्र जिसके माध्यम से वक्ता की ध्वनि दूर स्थित लोगों को सुनाई जाती है। (माइक्रोफोन) |
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ध्वनि-क्षेपण :
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पुं० [ष० त०] किसी स्थान पर उत्पन्न होनेवाली ध्वनि का एक विशेष प्रकार के वैद्युत्यंत्र की सहायता से चारों ओर बहुत दूर तक फैलाना या पहुँचाना। |
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ध्वनि-ग्राम :
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पुं० [ष० त०] ध्वनि-विज्ञान में, मनुष्य के गले से निकलनेवाली ध्वनि के भिन्न-भिन्न रूप जो कुछ विशिष्ट अवस्थाओं में बनते हैं। (फोनीम) जैसे—का, की, कू, के आदि के उच्चारण में ‘क’ की ध्वनि के रूप कुछ अलग-अलग होते हैं। |
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ध्वनित :
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वि० [सं०√ध्वन्+क्त] १. जो ध्वनि के रूप में प्रकट हुआ हो। २. किसी वाक्य आदि में झलकता हुआ (कोई गूढ़ आशय)। |
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ध्वनि-तरंग :
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स्त्री० [ष० त०] हवा की वह लहर जिसमें किसी स्थान में होनेवाली ध्वनि के फलस्वरूप एक विशेष प्रकार का कंपन होता है तथा जो कानों को उस ध्वनि का ज्ञान कराती है। (साउंड वेव)। |
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ध्वनि-विज्ञान :
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पुं० [ष० त०] वह विज्ञान जिसमें इस बात का विवेचन होता है कि बोलते समय मनुष्य के स्वर-यंत्र से किस प्रकार ध्वनियाँ या शब्द उत्पन्न होते हैं उनके कैसे और कितने भेद-प्रभेद होते हैं। (फोनो-टिक्स) |
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ध्वन्यात्मक :
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वि० [सं० ध्वनि-आत्मन्, ब० स०, कप्] ध्वनि से युक्त। |
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ध्वन्यार्थ :
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वि० [सं० धवन्यर्थ] किसी शब्द या पद का व्यंग्यार्थ। |
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ध्वन्यालेख :
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पुं० [सं० ध्वनि-आलेख, ष० त०] वह उपकरण जिसमें किसी की वक्तृता, गीत आदि अभिलिखित होता है और विशेष प्रक्रिया से उसी स्वर में फिर से बजाया जा सकता है। (रिकार्ड) |
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ध्वन्यालेखन :
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पुं० [सं० ध्वनि-आलेखन, ष० त०] किसी की ध्वनि को इस प्रकार किसी विशेष प्रक्रिया से सुरक्षित करना कि फिर उसकी पुनरावृति की जा सके। (रिकार्डिग) |
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